2024-09-09 16:03
बहुत अकेली सी हूँ मैं, कभी कभी लगता है एक पहेली सी हूँ मैं... न चाह चाँद तारो की सुलझी आसान अलबेली सी हूँ मैं,
कभी कभी लगता है तितली की सहेली सी हूँ मैं...
इश्क में चूर रंगत सा नूर, फूलों की हमजोली सी हूँ मैं...उड़ती हूँ आसमान में इठलाती नई नवेली सी हूँ मैं, कभी कभी लगता है कितनी अकेली सी हूँ मैं...
सिया सी सहज कभी, कभी चंचल तो कभी झुमका बरेली सी हूँ मैं... जानी पहचानी तो कभी अनजानी रंग रंगीली सी हूँ मैं,
कभी कभी लगता है कितनी अकेली सी हूँ मैं... 🌸