अपना वो घर नजर नहीं आता
गांव में अब शहर नहीं आता
भूल पाते नही हो तुम मुझको
तुमको ये भी हुनर नही आता
सूखी टहनी है सूखे पत्ते हैं
अब परिंदा इधर नही आता
तोड़ रिश्तों के ताने-बाने को
लौटकर पूरा घर नही आता
जीने के लिये और जीना है
बाद पूरा सफर नहीं आता
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प्रीति श्रीवास्तव