तुम वो नगमा हो जिसे मै गुनगुना नहीं सकता
तुम वो साज़ हो जिसे मैं बजा नहीं सकता
तुम वो शेर हो जिसके बिना मेरी ग़ज़ल अधूरी है
तुम वो किरदार हो जो मेरे अफसाने के लिए ज़रूरी है
तुम मेरी आँखो मे बसती हो ख्वाब की तरह
काश कभी मेरे आंगन में उतरो चाँद की तरह
तुम मेरे साथ रहती हो मेरा साया बन कर
फिर भी दिल मे रहती हो क्यूँ मेहमान बन कर
सबको दिखती है ये बेकारारी तो कैसे तुमसे छुपी है
या फिर अनजान बन कर तुम्हारी नज़रे झुकी है
या फिर मै वो हू जो तुम्हारे दिल में जगह पा नहीं सकता
तुम वो नगमा हो जिसे मै...