तुम स्याही सी शीतल हो
मैं कागज़ पर चलता कलम प्रिये....
तुम डाल पे बैठी कोयल हो
मैं उस कोयल की कूक प्रिये....
तुम प्रेम नगर की बंसी हो
मैं उस धुन पे नचता मोर प्रिये....
तुम कुंड की पावन अग्नि हो
मैं उसमें जलता घृत प्रिये....
तुम मेघ मल्हार की छंद सी हो
मैं मृदुल गीत का राग प्रिये....
तुम वृंदावन की शाम सी हो
मेरा मन तुलसी का दास प्रिये....
तुम पवित्र रूद्र की माला हो
मैं उस माला को जपता विप्र प्रिये....
तुम श्री कृष्ण की वाणी गीता हो
मैं चरणों में बैठा अर्जुन प्रिये.....
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