2025-03-16 05:36
है महत्वाकांक्षी मन
इस मन का क्या करूं
दुनियादारी की नहीं फिकर
इस मन का क्या करूं
है इसका संसार बडा़
है इसका विस्तार बड़ा
हैं इसके डैने बडे बडे
इस मन का क्या करूं
नहीं सभंलता अब मुझसे
कहता मुझको उड़ना है
नहीं बस में है ये मन
इस मन का क्या करूं
कभी हवा में लहराता है
कभी गगन में बलखाता है
है मोर मोरनी सा ये मन
इस मन का क्या करूं
चंचल है,चुलबुला है ये
है शोख अदायें इसकी
ना समझ नादान है ये
इस मन का क्या करूं
निर्मल नदियों की उफान
सुंदर झरने का संगीत है
है सागर सा ये गहरा भी
इस मन का क्या करूं