2025-03-16 02:02
कोई पूछे तो मजे में हैं
बोल कर मुस्कराते हैं
हकीकत क्या है
ये भी राज है
सच्चाई से नजरें चुरा
हम भी तो जीते जाते हैं
लम्हा लम्हा गुजर रहा
बीती यादों के सहारे
कौन किसको बताये
गुजरे वक्त की बातें
कौन सुनेगा
पुरानी हो गई
उस किताब की बातें
उम्र के इस दौर में
जजबात की बातें
खयालात की बातें
सब बिखरा बिखरा
लगता है अपने में ही
बेगाना पन दिखता है
जहां पराया,जगह पराई
लोग पराये लगते हैं
सहानुभूति पाते ही
बेगाने अपने लगते है
बीते दिन महीने साल
गुजरते जाते हैं
कल होगा इससे बेहतर
उम्मीद में जीते जाते हैं।