तिरछे तिरछे तीर नज़र के लगते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है
आग का क्या है पल दो पल में लगती है
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है
पाँव ना बाँधा पंछी का पर बाँधा
आज का महबूब कितना सियाना लगता है
सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हँसता चेहरा एक बहाना लगता है
सुनने वाले घंटों सुनते रहते हैं
मेरा/मेरी फ़साना सब का फ़साना लगता है
बता क्या तेरी/ तेरे ग़ज़ल में जादू है
हार इंसान तेरा दिवाना/ दिवानी लगता है ...